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18:25, 13 अक्टूबर 2024 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=काजल भलोटिया
|अनुवादक=
|संग्रह=
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<poem>
स्वीकारना सीखा
हाँ, मुझे प्रेम है तुमसे!
पर कभी चाहत ही नहीं रही
तुम्हें पा लूं या तुम्हारी बन जाऊँ
यूँ भी प्रेम में लष्ट कहाँ होता है साथी
प्रेम तो बस 'देना' ही जानता है...
हाँ...
तुम्हारे आने से पहले
बेकरारी से इंतज़ार किया तुम्हारा
मुझे पूरा यक़ीन था इस बात पर
किश्तों में मिली छोटी छोटी ख़ुशियाँ
मन और जीवन दोनों सँवार देती है।
</poem>