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अबोध / दीपा मिश्रा

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युद्धक एहि संक्रमण कालमे
जखैन माएक स्तन तकैत अबोध
ठेहुनिया दैत रुकि जाइए
चारूकात बम बारूदक धमाकासँ
पटल अपस्याँत धरती
बफारि तोड़ैत कनैये
अपनहि दशा पर
ककरो किओ किछु कहय बला नै
ककरो किओ बुझबै बला नै
अकान भेल लोक बनि गेल अछि पिशाच
एक दोसराकेँ नोंचि खाए चाहैये बस
माएक लहास पर चढ़ि ओ शिशु
पहुँच गेल अछि अपन लक्ष्य तक
नहि जानि कोना दूध
एखनो उतरि रहल छै
</poem>
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