2,891 bytes added,
23 अक्टूबर {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कविता भट्ट
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
राजमार्ग को लगा
मैं गाँव के कपोलों पर लिख सकता हूँ
अनंत जीवन, प्रसन्नता और सपने
गाँव की मुस्कान को
मैं ऐतिहासिक गीत में परिवर्तित कर दूँगा
स्वर लहरियाँ गूँजेगी
मंदिर की घंटियाँ
घोलेंगी मधुमिश्रित शांति
खेतों में लहलहाएँगी
धान, सरसों, कोदू, कौणी
पंचायती चौंतरे पर हुक्के गुड़गुड़ाएँगे
पशुकुल की गलघंटियाँ खनकेंगी
थड़िया, चौंफलें और मंडाण
घोलेंगे वातावरण में जीवंतता
मदमाती बालाएँ खिलखिलाती
गाँव में विचरण करेंगी
साड़ियों के पल्लू लहराते हुए।
छुटके खेलेंगे पिट्ठू - राज - पाट - गारे
जाने क्या - क्या और भी
पंचायती विद्यालय में
पहाड़े रटने के स्वर
गूँजेंगे गगनभेदी नारे
स्वतंत्रता दिवस पर-
“भारत माता की जय”
गणतंत्र दिवस होगा
विशेष लड्डुओं के डिब्बों से मीठा
रंग- बिरंगे सपने लिये
राजमार्ग बढ़ा गाँव की ओर
लेकिन यह क्या
उसके पहुँचने से पहले ही
गाँव अंतिम साँसें गिन रहा था
उसकी बूढ़ी हड्डियाँ मरणासन्न थी
खटिया पर खाँसते हुए गाँव पूछता है
अब आए हो, जब मेरा यौवन हो चुका विदा
अब नहीं बचूँगा, कितना भी औषध करो
किंतु फिर भी
राजमार्ग ने आँखों की चमक नहीं खोई
बोला, “सच करूँगा तुम्हारे सपने
क्योंकि मुझे बताया गया है और सच है
''''भारतमाता ग्रामवासिनी!''''
</poem>