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जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना / गोपालदास "नीरज"
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30 अक्टूबर
नहीं मिट सका है धरा का अँधेरा,
उतर क्यों न आयें नखत सब नयन के,
नहीं कर सकेंगे
ह्रदय
हृदय
में उजेरा, कटेंगे तभी यह
अँधरे
अँधेरे
घिरे अब,
स्वयं धर मनुज दीप का रूप आए
जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए।
</poem>
वीरबाला
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