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12:32, 21 नवम्बर 2024 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=सुशांत सुप्रिय
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<poem>
कल रात सपने में
गांधारी ने इंकार कर दिया
आँखों पर पट्टी बाँधने से
एकलव्य ने नहीं काटा
अपना अँगूठा द्रोण के लिए
सीता ने मना कर दिया
अग्नि-परीक्षा देने से
द्रौपदी ने नहीं लगने दिया
स्वयं को जुए में दाँव पर
पुरु ने नहीं दी
ययाति को अपनी युवावस्था
कल रात
इतिहास और मिथिहास की
कई ग़लतियाँ सुधरीं
मेरे सपने में
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