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06:11, 26 नवम्बर 2024 {{KKGlobal}}
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<poem>
काग़ज़ पर आसमानी आकाश बनाकर
वह बैठा है चौखट पर
माँ जैसे घर में घुसती है
वह गले लगाकर पूछता है:
मैंने तो पूरा आकाश काग़ज़ पर जमा रखा है
बिना आकाश के तुम कैसे रही बाहर?
माँ ने उसके सिर को सहलाते हुए कहा :
वह दूसरा आकाश है जो बहुत बड़ा है
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