Changes

अबोध / अनामिका अनु

724 bytes added, 06:11, 26 नवम्बर 2024
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> काग़ज...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
काग़ज़ पर आसमानी आकाश बनाकर
वह बैठा है चौखट पर
माँ जैसे घर में घुसती है

वह गले लगाकर पूछता है:
मैंने तो पूरा आकाश काग़ज़ पर जमा रखा है
बिना आकाश के तुम कैसे रही बाहर?

माँ ने उसके सिर को सहलाते हुए कहा :
वह दूसरा आकाश है जो बहुत बड़ा है
</poem>
80
edits