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06:35, 26 नवम्बर 2024 {{KKGlobal}}
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‘तुमसे बात करनी है’
यह सीधी पंक्ति मौन की गढ़चिरौली में भला कैसे बच पाएगी?
‘तुम्हें देखना है’
यह सरल पंक्ति तुम्हारे संशय की नामदाफा में भला कैसे बचेगी?
‘तुमसे मिलना है’
साधारण-सी यह चाह तुम्हारी शंकाओं के सुंदरवन में एक दिन दम तोड़ देगी
अपनी सभी सरल चाहों को मैंने तुम्हारी क्लिष्टता के गुल्लक में डाल दिया है
गाढ़े वक़्त में तुम उनसे मुस्कान मोल लेना
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