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11:38, 3 दिसम्बर 2024 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=अनामिका सिंह 'अना'
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जाहिल हैं, नीच हैं कहें बिल्कुल गँवार हैं
वामन-अहीर को जहाँ दिखते चमार हैं
ठाकुर खड़े हैं रास्तों को रोक-रोक कर
दूल्हे कहीं जो भूल से घोड़ी सवार हैं
पत्तल उठाएँ और जनावर मरे हुए
ये सिर्फ़ और सिर्फ़ सिर्फ़ कामदार हैं
टोले अलग बसे हैं भले गाँव एक है
बिटिया के ब्याह में रहे सूने दुआर हैं
अब आप ये कहेंगे कि अब ऐसा कुछ नहीं
तो मानिए कि आपके वो ही विचार हैं
दावे सभी हैं झूठ, सभी झूठ आँकड़े
सच है ज़मीर हम सभी के दागदार हैं
तुझको मिलेगी दाद नहीं, है ये तय 'अना'
सच और उसपे तुर्रा ये तीखे अशआर हैं
</poem>