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कुछ न माँग / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
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17:38, 11 दिसम्बर 2024
[[Category: ताँका]]
<poem>
1
62
कुछ न माँगा
दिनभर खटे थे
माँगी थीं साँझ ढले
धिक्कार मिली।
2
63
हदे होती हैं
प्यार-मनुहार की
तकरार की
बेशर्मी
की
का
न होता
ओर-छोर कोई भी।
'''(7-8-2011)'''
</poem>
वीरबाला
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