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[[Category: ताँका]]
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162
कुछ न माँगा
दिनभर खटे थे
माँगी थीं साँझ ढले
धिक्कार मिली।
263
हदे होती हैं
प्यार-मनुहार की
तकरार की
बेशर्मी की का न होता
ओर-छोर कोई भी।
'''(7-8-2011)'''
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