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|रचनाकार=दिनेश शर्मा
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<poem>
पतित पावनी गंगा
स्वर्ग से आती है
धरा पर
भागीरथी हो जाती है
लेकिन
गंगा यूं ही
भागीरथी नहीं होती
देवलोक से मृत्युलोक पर
स्वयं नहीं उतरती
करनी पड़ती है
भगीरथ को तपस्या
अस्तु
उठो !
भगीरथ बनो
तप धारण करो
निश्चित है
उतर आएगी
यथार्थ के धरातल पर
बन भागीरथी
तुम्हारे सपनों की गंगा
और ले चलेगी तुम्हें
भगीरथ कुल की तरह
मुक्ति की राह पर ।
</poem>