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16:21, 21 दिसम्बर 2024 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=नरेन्द्र जैन
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|संग्रह=
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<poem>
यह एक अच्छा दिन है
या दिन की यह एक अच्छी शुरूआत है
जैसे वाक्य मैं कभी अपने आप से बोल नहीं पाता
क्योंकि कुछ न कुछ ऐसा घटित हो ही जाता है
कि अच्छे को ख़राब होने में देर नहीं लगती
कविता, नाटक, कहानी यहाँ तक कि चित्र में भी
अक्सर चीज़ें इसी तरह घटित होती हैं
निरन्तर अच्छे को ख़राब करती हुई
मैं ख़राब को दुरुस्त नहीं करता
उसमें काट-छाँट कर कुछ बेहतरी लाने की कोशिश नहीं करता
मैं चाहता हूँ कि ख़राब इतना ज़्यादा ख़राब हो जाए
कि नष्ट ही हो जाए पूरी तरह
मैं दरअसल कहना चाहता हूँ खुलकर
यह अभी की अच्छी शुरूआत है
</poem>