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16:12, 24 दिसम्बर 2024 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=गरिमा सक्सेना
|अनुवादक=
|संग्रह=कोशिशों के पुल
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<poem>
हम ज़िंदा हैं
हममें ज़िंदा रहा कबीर
जब सब चुप थे
हम शब्दों की धार रहे
कभी बने हम ढाल
कभी तलवार रहे
हम ज़िंदा हैं
हमने सही परायी पीर
हम साखी में,
सबद, रमैनी, बातों में
आदमजात रहे
सारे हालातों में
हम ज़िंदा हैं
हममें है नदिया का तीर
मगहर हैं हम,
आडंबर, पाखंड नहीं
पूरी धरती हैं
सीमित भूखंड नहीं
हम ज़िंदा है
कर्म हमारी है तक़दीर
</poem>