739 bytes added,
00:05, 26 दिसम्बर 2024 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=नरेन्द्र जैन
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
जो बात
शीशे की तरह साफ़ थी
उसमें एक बात की परछाईं उतर आई है
नदी बह रही है पूरे वेग से
छायाकार ठहरा एक उदास शाम का मेहमान
उसके कैमरे में
शव की तरह लेटा है एक दृश्य
और वह अभी
बाहर नहीं आया है
बरबाद शुदा जीवन का
यही हासिल ठहरा
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader