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बचा ही क्या है हयात में अब सुनहरे दिन तो निपट गये हैं / 'अना' क़ासमी
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15:24, 30 दिसम्बर 2024
यही ठिकाने के चार दिन थे सो तेरी हां हूं में कट गये हैं
हयात
<ref>जिंदगी
ही थी सो बच गया हूं वगरना सब खेल हो चुका था
तुम्हारे तीरों ने कब ख़ता की, हमीं निशाने से हट गये हैं
वीरेन्द्र खरे अकेला
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