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19:17, 30 दिसम्बर 2024 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मिगुएल हेरनान्देज़
|अनुवादक=शुचि मिश्रा
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
हम ताड़ के दो वृक्ष थे जो
बाँहों में न भर सके इक-दूजे को
कि हमारे बीच चाँद की तरह था हमारा प्रेम
दो देहों के बीच की अंतरंग बुदबुदाहट
जैसे लोरी में तब्दील हुई
किन्तु काँटों में उलझकर टूट गई
हमारी कोमल और नाज़ुक आवाज़ें... भर्राई-सी
पत्थर के मानिन्द जम गए हमारे अधर
आलिंगन की आकांक्षा में परस्पर
हिल गई हमारी मांसपेशियाँ
जल उठी अस्थियाँ
स्पर्श के सपन में
इक-दूजे को छूने के जतन में
इक-दूजे की बाँहों में ही
दम तोड़ दिया बाँहों ने हमारी
चाँद की तरह था हमारा प्रेम जिसने
निगल लिया हमारी नितान्त एकाकी देहों को
हम खोजते हैं अब इक-दूजे को
प्रेत की तरह और देखते हैं कि
कितने बिखर चुके हैं हम
एक दूजे से दूर रहकर !
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : शुचि मिश्रा'''
'''और लीजिए अब यही कविता मूल स्पानी में पढ़िए'''
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