कहीं आम था, कहीं अनार
कहीं था पोखर, कहीं तलैया
कहीं थी झरनों की झँकारझंकार
कभी वो तोड़ें पकते जामुन
भरी दोपहरी नील गगन में
उँचीऊँची-उँची ऊँची उड़े पतँगपतंग
बाँध के डोरी उड़ न पाएँ
मन में रहती एक उमंग
खुली छत पर श्वेत बिछौना
सप्तऋषि की गिनती करते
कभी ढूँढ़ते ढूँढते ध्रुव तारे कोचँदा चन्दा से दो बातें करते
खेल-खेल में दिन थे बीते