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13 जनवरी {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=पाब्लो नेरूदा
|अनुवादक=प्रभाती नौटियाल
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<Poem>
वे दिन और हैं जो अभी आए नहीं,
वे बनाए जा रहे हैं
जैसे कि रोटी या कुर्सियाँ या दवाख़ानों
या कारख़ानों में उत्पाद :
आएँगे जो दिन कारख़ाने उनके भी हैं :
मौजूद हैं आत्मा के शिल्पी
जो ऊपर उठाते, तौलते और करते हैं तैयार
कुछ कड़वे या दुरुस्त दिन
अचानक जो पहुँचते हैं दरवाज़े पर
एक नारंगी से नवाजने
या हमारा क़त्ल फ़ौरन करने ।
'''मूल स्पानी भाषा से अनुवाद : प्रभाती नौटियाल'''
</poem>