1,801 bytes added,
27 जनवरी {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
|अनुवादक=
|संग्रह=दहकेगा फिर पलाश / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
रू-ब-रू होने को सारी खा़मियाँ बेचैन हैं।
इस ख़बर से मुल्क की कुछ हस्तियाँ बेचैन हैं।
जब से ज़हरीली हवा गुलशन पर हमलावर हुई,
सख्त सदमें में हैं भँवरे, तितलियाँ बेचैन हैं।
आयेगा कब दस्तख्त करना अँगूठे की जगह,
हाथ में पकड़े क़लम ये उँगलियाँ बेचैन हैं।
हो सके तो मेरी जानिब थोड़ा मुड़कर देखिये,
आपसे कहने को कुछ ये कनखियाँ बेचैन हैं।
क्या सबब है गुलसितां में एक मेरा ही फकत,
आशियाना फँूकने को बिजलियाँ बेचैन हैं।
कै़द में बेबस परिन्दों का तड़पना देखकर,
टूटने को ख़ुद कफस की तीलियाँ बेचैन हैं।
खाक में कैसे मिलादें इस वतन की आबरू,
कुछ अदू ‘विश्वास’ अपने दरमियाँ बचैन हैं।
</poem>