1,358 bytes added,
27 जनवरी {{KKCatGhazal}}
<poem>
कोई भी बात बिना बात कहां होती है
रस-भरे दिल से मुलाक़ात कहां होती है
अब न इमदाद पड़ोसी की करे है कोई
अब रकम जेब में इफ़रात कहां होती है
सिर्फ़ लफ़्ज़ों से त'अल्लुक़ है हमारा लिख दें
हम अदीबों की कोई ज़ात कहां होती है
आज धरती के कलेजे से नमी है ग़ायब
आजकल वक़्त पे बरसात कहां होती है
ये मुकद्दर है मिली मुफ़्त मुहब्बत वर्ना
वादिये इश्क़ में खैरात कहां होती है
रंग अब सिर्फ़ दिखावे का यहां चढ़ता है
सिर्फ़ पड़तीं हैं शहें मात कहां होती है
अब्र में चांद छुपा जब न निकलना चाहे
अब वो 'विश्वास' हसीं रात कहां होती है
<poem>