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फिर अम्न के पैकर की फिज़ा क्यों नहीं आती / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'
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29 जनवरी
जब तुझको नहीं रस्मे मोहब्बत को निभाना
यादों के ख़ुतूत उसके जला क्यों नहीं आती
यूँ शीशए-दिल तोड़ के जाता नहीं कोई
करनी पे उसे अपनी हया क्यों नहीं आती
पूछूँगा मैं लुक़मान से ये रोज़े-क़यामत
SATISH SHUKLA
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