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हर एक लफ़्ज़ पे वो जाँ निसार करता है
अदब नवाज़ है उर्दू से प्यार करता है
नज़र के तीर से क्यों कर वो वार करता है
तअल्लुक़ात त'अल्लुक़ात का मौसम अजीब है मौसमकभी ये ख़ुश्क ख़ुश तो कभी ख़ुशगवार सोगवार करता है
फ़रेबो-मक्र से मारा है पीठ में ख़न्जर
वगरना, मर्द तो सीने पे वार करता है
उसी के वास्ते रब ने बनाई है जन्नत
जो काम नेक यहाँ बेशुमार करता है
अता हुई है, हमेशा ही रहनुमाई 'रक़ीब'
जो सर निगूँ दरे-परवर दिगार करता है
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