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कल 19:12 बजे {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=उत्पल डेका
|अनुवादक=नीरेन्द्र नाथ ठाकुरिया
|संग्रह=
}}
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<poem>
खोपड़ी के अन्दर की दुनिया
बिना चश्मे के दिखती है
अजीब दुनिया
हमने जो खेल खेला
वह ख़त्म नहीं हुआ
बड़े अक्षरों में छपे विज्ञापनों के पीछे
पानी की चिपकी हुई बून्दें हैं
निवेश का जीवन
खून चूसना हमारा धर्म है
शोषकों और शासकों की
हड्डियों में पले बच्चे भूख से रोते हैं
मज़े के लिए दूसरों के मुँह से
निवाला छीनने का खेल दिलचस्प है
'''मूल असमिया भाषा से अनुवाद : नीरेन्द्र नाथ ठाकुरिया'''
</poem>
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