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<poem>
प्यार करती हूँ मैं तुम्हें. बस, इतना ही कहती हूँ,
दिन ढलता है, फिर रात भर जगकर सुबह की ओर बढ़ता है,यह कुछ भी नहीं, लेकिन यह लालसा पैदा हुई है एक स्मृति से
जो अफ़वाह फैलाने वाले से कहीं बड़ी है
पैदा होना — प्रेम करने से थोड़ा अधिक है
कि प्रार्थना करो, दुआ करो,
एक आवाज़ के लिए चार हाथों से कविता लिखो,
यह कुछ भी नहीं, एक ही पगडण्डी से गुज़रते हैं दो रास्ते
हम बाँटते हैं एक ही आकाश, जो एक ही समय में
एक जैसी कन्दराओं पर छाता है,
तुम्हें चाहती हूँ मैं, तुम्हारे और अपने शरीर से कहीं दूर
अशुभ ताक़तों के ख़िलाफ़ और नैतिक आचरणों के विरुद्ध
तुमसे प्यार करती हूँ मैं ।
हमारे सितारे हमारे जीवन को झुर्रियों में ढालते हैं और
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