गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
रत्तीभर झूठ नहीं इसमें, सपनों में मेरे आते हो तुम / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'
2 bytes added
,
4 फ़रवरी
दुनिया तुम्हें कुछ भी कहती है, कहने दो इसे ये दुनिया है
कुरआन
कुर'आन
की सूरत मन में हो, गीता की तरह भाते हो तुम
भड़की है आग रक़ाबत की, उस आग में मन जलता है 'रक़ीब'
दामन से हवा ख़ुद दे दे कर, क्यों आग को भड़काते हो तुम
</poem>
SATISH SHUKLA
481
edits