उफ़! मिटा पाए न उसकी याद अपने दिल से हम
प्यार करते हैं बहुत जिस हुस्ने-लाहासिल से हम
उफ़ ! मिटा पाए न जिसकी याद अपने दिल से हम
प्यार करते हैं बहुत उस हुस्ने-लाहासिल से हम
गर्मिए लब की तपिश से सुब्ह पाते हैं हयात
क़त्ल हो जाते हैं शब को, अब्रुए क़ातिल से हम
मुस्कुरा कर वो ये बोले और फिर शरमा गएआपने हमको छुआ तो फिर गए कुछ खिल से हम बस! , ख़ुदा का शुक्र कह कर, टाल देता है हमें
हाल जब भी पूछते हैं इस दिले-बिस्मिल से हम
इक झलक देखे बिना उठकर तेरी महफ़िल से हम
देखकर लब मुस्कराहट पर तबस्सुमकिसी की, खा गए धोका 'रक़ीब'दिल लगा बैठे किसी हैं किस मग़रूर पत्थर दिल से हम
</poem>