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16 फ़रवरी {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=राकेश कुमार
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<poem>
हमने सबकुछ छोड़ दिया है तेरी खातिर ।
जाने कितना दर्द, पिया है तेरी खातिर ।
वैसे तो सब लोग, हमारे अपने ही थे,
सबसे नाता तोड़ लिया है तेरी खातिर।
मार न पाया एक, कभी मैं मक्खी-मच्छर,
अरमानों का खून, किया है तेरी खातिर ।
गली-गली में ख़ूब सुनाई देते ताने,
फिर भी लब को नित्य, सिया है तेरी खातिर ।
मिली प्रेम में मात्र, मुझे तो रुसवाई ही,
फिर भी हर पल प्रेम, ज़िया है तेरी खातिर।
</poem>