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|रचनाकार= नरेन्द्र शर्मा
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<poem>
भरे जंगल के बीचो बीच,
न कोई आया गया जहाँ,
चलो, हम दोनों चलें वहाँ ।

जहाँ दिन भर महुआ पर झूल,
रात को चू पड़ते हैं फूल,
बाँस के झुरमुट में चुपचाप,
जहाँ सोए नदियों के कूल;

हरे जंगल के बीचो - बीच,
न कोई आया गया जहाँ,
चलो, हम दोनों चलें वहाँ।

विहग - मृग का ही जहाँ निवास,
जहाँ अपने धरती, आकाश,
प्रकृति का हो हर कोई दास,
न हो पर इसका कुछ आभास,

खरे जंगल के बीचो - बीच,
न कोई आया गया जहाँ,
चलो, हम दोनों चलें वहाँ ।
</poem>
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