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23 मार्च {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=संतोष श्रीवास्तव
|अनुवादक=
|संग्रह=यादों के रजनीगंधा / संतोष श्रीवास्तव
}}
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<poem>
भय और डर का केंद्र
बने हैं केशर के बाग
टयूलिप की क्यारियाँ
डल और नगीना झील
उस पर तैरते शिकारे
जहाँ हम
पहुँच जाते थे निर्भीक
सुकून तलाशने
वह सौंदर्य ,वह स्वर्ग
आतंक के चक्रव्यूह में
बरसों से फँसा हुआ है
सियासत की गोटियाँ
आरोप प्रत्यारोप के
दांवपेंच से
खुद को बेदाग साबित
करने में मुब्तिला हैं
और हमें इंतज़ार है
किसी देवदूत का
जो आतंक का खात्मा कर
लौटा दे
हमें हमारी जन्नत
हमारा कश्मीर
पहले जैसा
</poem>