{{KKCatGhazal}}
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ऐ बड़ी मछली कभी छोटी थी तू भी
ऐसी ही नादान थी, भोली थी तू भी
याद कर ले अपने वे गुज़रे हुए दिन
हर बड़ी मछली से तब डरती थी तू भी
इक से इक घोघर समंदर में भरे थे
किस परेशानी में तब होती थी तू भी
अब तो माहिर हो चुकी हर खेल में तू
पर, शुरू में देखा है ऐसी थी तू भी
आज हाकिम बन के इतराती मगर , तब
सबके सुख - दुःख में खड़ी होती थी तू भी
जिससे अब परहेज़ करने लग गयी है
उस मलिन बस्ती में ही रहती थी तू भी
तू बदल जायेगी यूँ सोचा कहाँ था
बेवफ़ा तब बावफ़ा होती थी तू भी
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