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सब सहन करता है अच्छा आदमी
कुछ नहीं कहता है अच्छा आदमी
यूँ बहुत कुछ होगा कहने के लिए
चुप ही पर रहता है अच्छा आदमी
 
कौन कब कितनी सज़ा दे दे उसे
हर समय डरता है अच्छा आदमी
 
वो ख़ता कैसी भी हो, किसकी भी हो
अपने सर मढ़ता है अच्छा आदमी
 
ना तो करना जैसे सीखा ही नहीं
सिर्फ़ हाँ करता है अच्छा आदमी
 
चोट अपनों से लगे ग़ैरों से या
उफ़ नहीं करता है अच्छा आदमी
 
मौत आये या न आये दोस्तो
रोज़ ही मरता है अच्छा आदमी
</poem>
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