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श्रद्धा / भाग २ / कामायनी / जयशंकर प्रसाद
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2 जून
हृदय में क्या है नहीं अधीर,
लालसा
जीवन
की निश्शेष?
कर रहा वंचित कहीं न त्याग,
तुम्हें,मन में धर सुंदर वेश।
Arti Singh
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