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|रचनाकार=भव्य भसीन
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<poem>
तुझे तप करना है, पार्वती के समान।
दाह होना है, सती की तरह।
धरा में समाना है, सीता की भाँति ।
वियोग सहना है, राधिका-सा वीभत्स ।
प्रतीक्षा करनी है, शबरी-सी लंबी।
परीक्षा देनी है, गोपियों-सी कठिन।
अश्रु रूपेण होगी, यमुना-सी अविरल।
मिलनोत्कंठा चाहिए, वेगवती गंगा-सी तीव्र।
अभी तू थक नहीं सकती।
तू थक नहीं सकती।
</poem>