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कभी-कभी ... / अनिल जनविजय / हरमन हेस

44 bytes removed, गुरूवार को 23:47 बजे
तो मैं चुपचाप खड़ा होकर बहुत देर तक ये आवाज़ें सुनता हूँ ।
मेरी दुनिया घूम जाती है और पहुँच जाती है वापस उस जगह पर जहाँ भुला बिसरा दिए गए हज़ारों साल पहले,
हूकती चिड़िया और बहती हवा
मेरे ही जैसे थे और , मेरे भाई-बन्धु थे ।
मेरी आत्मा एक पेड़ में बदल जाती है,
फिर एक जानवर में और घिर आए बादलों में।
फिर बदली हुई अजीब सी हालत में वह घर लौट आती लौटती है
और मुझसे सवाल पूछती है । मुझे क्या जवाब देना चाहिए ?
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