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14 जून {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=चन्द्र गुरुङ
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<poem>
छोटे–छोटे बच्चे मिट्टी में खेल रहे हैं
लकड़ी और तिनकों के घर बने हैं
मिट्टी के ही बर्तन
थाली–कटोरी, बाल्टी और पतीले हैं
बच्चे पानी में खेल रहे हैं
पानी के ऊपर काग़ज़ की नाव में ख़ुशी खिया रहे हैं
तर–ब–तर पानी से भिगे हैं
बच्चे पानी–कमल चुन रहे हैं
कानों में, बालों में रंगबिरंगे फूल लगा रखे हैं
भूलकर दोस्तों के साथ की लड़ाई-झगड़ा
बच्चे वृद्ध लोगों से छेड़खानी कर रहे हैं
साथ में उछलते और नाचते हैं
इनके चेहरे की झुर्रियों में कुछ देख रहे हैं
ढूँढ़ रहे हैं सफेद बालों का रहस्य
बच्चे जीवन के नज़दीक लगते हैं
किसी डर व चिन्ता से दूर
रमते हैं ये बच्चे अलग दुनिया में
अगर
इन बच्चों के पास जाते हैं आप
वे संदेह करते हैं
वे डर जाते हैं
वे चिल्लाते हैं
वे प्रतिरोध करते हैं
वे रोते हैं
इस समय
बच्चे उस सुन्दर दुनिया को बचाना चाहते हैं
जिसको है हम लोगों से डर।
</poem>