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सोमवार को 13:19 बजे {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रसूल हमज़ातफ़
|अनुवादक=साबिर सिद्दीक़ी
|संग्रह=
}}
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<poem>
तू क्यों सुबके-रोए, बच्ची
तू क्यों सुबके-रोए !
मैं रोऊँ-चिल्लाऊँ, बच्ची
मैं रोऊँ-चिल्लाऊँ;
छोड़ मुझे माँ-बाप सिधारे
खड़ी यतीमी हाथ पसारे
तू क्यों सुबके-रोए, बच्ची
मैं रोऊँ-चिल्लाऊँ;
जंग में भाई मैंने खोए
वीर हज़ारों रण में सोए
मैं रोऊँ-चिल्लाऊँ, बच्ची
मैं रोऊँ-चिल्लाऊँ;
तू क्यों सुबके-रोए बच्ची
तू क्यों सुबके-रोए !
यह सब सुनके बोली बच्ची
नाना, बात तुम्हारी सच्ची
लिखते-पढ़ते गाते तुम हो
सृजन की दुनिया में गुम हो
मेरी उम्र पड़ी है आगे
क़िस्मत कौन दिशा ले भागे
कुछ भी जान न पाऊँ, नाना
कुछ भी समझ न पाऊँ,
बस, रोऊँ-चिल्लाऊँ, नाना
बस, रोऊँ-चिल्लाऊँ !
बस, रोऊँ-चिल्लाऊँ !
'''रूसी भाषा से अनुवाद : साबिर सिद्दीक़ी'''
</poem>