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16 जुलाई {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=निहालचंद
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<poem>
मेरे भाई के पास, दासी जाणा पड़ै ज़रूर,
सखी हे, हुकम अदूली मत करिये॥टेक॥
हाँ जी का नौकर सुख पावै, ना जी का कर घर पछतावै,
यो चाल्या आवै खास, दासी प्राचीन दस्तूर,
सखी हे, हुकम अदूली मत करिये ।1।
मेरे भाई तै मतना डरै, तनैं जाए बिन कोन्या सरै,
हे मत चित्त करै उदास, नौकर होते शर्म हजूर,
सखी हे, हुकम अदूली मत करिये ।2।
तू बूझ लिए कीचक के घर नै, जाण सै उसकी सारे शहर नै
ऊपर नै नाड़ उकास, वह पावै नहीं नशे मैं चूर,
सखी हे, हुकम अदूली मत करिये ।3।
दग्धदार बिलकुल दहै, समझै सोई श्रोता लहै,
कहै सरूपचन्द का दास, निहालचन्द कविता के घर दूर,
सखी हे, हुकम अदूली मत करिये ।4।
</poem>