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|रचनाकार=विनीत पाण्डेय
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<poem>
कभी आग है तो कभी जलजले हैं
सभी मौसमों में ही हम तो ढले हैं
कोई ख़ार तुमको न चुभ जाए देखो
हमारा है क्या बंजरों में पले हैं
परिंदों को हक़ की लड़ाई है लड़नी
उधर आँधियाँ हैं इधर घोंसले हैं
अगर हार इक मिल गई तो हुआ क्या
बुलंदी पर फ़िर भी मेरे हौसले हैं
किसी का नहीं है हमें ख़ौफ़ हम तो
अकेले ही हर रास्ते पर चले हैं
</poem>