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|रचनाकार=शैल चतुर्वेदी
|संग्रह=चल गई / शैल चतुर्वेदी
}}<poem>
बीस साल पहले
हमने कोशिश की
हमें भी मिले
कोई नौकरी अछ्छी अच्छी-सी
इसी आशा में दे दी
दरख़्वास्त
गया था बुलाया
हम बनठन बन-ठन कर
राजकुमारों की तरह तनकर
पहुंचे रोज़गार दफ़्तर
कूदने फांदने की
सात दिन बाद
'शो' मे में लाया गया
उचक-उचक कर
दिखा रहे थे कलाबाजियाँ
दर्शक-गण बुद्धू बने
बजा रहे थे तालियाँ
तभी अक्स्मात अकस्मात
छूट गया हाथ
जा गिरे