Changes

वो तो लड़की अन्धी थी
आँख वाली रहती
तो छती छाती का बाल नोच कर कहती
ऊपर ख़िज़ाब और नीचे सफेदी
वाह रे, बीस के शैल चतुर्वेदी
हमारे डैडी भी शादी-शुदा थे
मगल मगर क्या मज़ाल
कभी हमारी मम्मी से भी
आँख मिलाई हो
हमारे डैडी दो-दो हज़ार
एक बैठक में हाल जाते थे
मगर दूसरे ही दिन चार हज़ार '
न जाने, कहाँ से मार लाते थे
तुम भी चने फांकते हो
न जाने कौन-सी पीते हो
हे रात भर खांसते हो
मेरे पैर का घाव
नाखून तोड़ दिया
अभी तक दर्द होता है
तुमसा तुम सा भी कोई मर्द होता है?
जब भी बाहर जाते हो
कोई ना कोई चीज़ भूल आते हो
दो रुपये का साग तो
अकेले तुम खा जाते हो
उस वक्त क्या टोकूँटोकूं
जब थके मान्दे दफ़्तर से आते हो
कोई तीर नहीं मारते
जो दफ़्तर जाते हो
वोज़ रोज़ एक न एक बटन तोड़ लाते हो
मैं बटन टाँकते-टाँकते
काज़ हुई जा रही हूँ
तंग पतलून सूट नहीं करतीं
किसी से भी पूछ लो
झूठ नहीँ नहीं कहतीइलैस्टिक डलवते डलवाते होअरे, बेल्ट क्युँ क्यूँ नहीं लगाते होफिल फिर पैंट का झंझट ही क्यों पालो
धोती पहनो ना,
जब चाहो खोल लो
गृहस्थी चलाना खेल नहीं
भेजा चहिये।"
</poem>