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{{KKRachna
|रचनाकार=शैल चतुर्वेदी
|संग्रह=चल गई / शैल चतुर्वेदी
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लोकल ट्रेन से उतरते ही<br>हमने सिगरेट जलाने के लिए<br>एक साहब से माचिस माँगी <br>तभी किसी भिखारी ने<br>हमारी तरफ हाथ बढ़ाया <br>हमने कहा- <br>"भीख माँगते शर्म नहीं आती?" <br>वो बोला-<br>"माचिस माँगते आपको आयी थी क्‍या"<br>बाबूजी! माँगना देश का करेक्‍टर है<br>जो जितनी सफाई से माँगे<br>उतना ही बड़ा एक्‍टर है <br>ये भिखारियों का देश्‍ा है <br>लीजिए! भिखारियों की लिस्‍ट पेश है<br>धंधा माँगने वाला भिखारी <br>चंदा माँगने वाला<br>दाद माँगने वाला<br>औलाद माँगने वाला <br>दहेज माँगने वाला <br>नोट माँगने वाला <br>और तो और <br>वोट माँगने वाला<br>हमने काम माँगा<br>तो लोग कहते हैं चोर है<br>भीख माँगी तो कहते हैं <br>कामचोर है <br>उनसे कुछ नहीं कहते <br>जो एक वोट के लिए <br>दर-दर नाक रगड़ते हैं<br>घिस जाने पर रबर की खरीद लाते हैं <br>और उपदेशों की पोथियाँ खोलकर <br>महंत बन जाते हैं। <br>लोग तो एक बिल्‍ला से परेशान हैं<br>यहाँ सैकड़ों बिल्‍ले <br>खरगोश की खाल में देश के हर कोने में विराजमान हैं।<br><br>
हम भिखारी ही सही <br>मगर राजनीति समझते हैं <br>रही अखबार पढ़ने की बात <br>तो अच्‍छे-अच्‍छे लोग <br>माँग कर पढ़ते हैं<br>समाचार तो समाचार <br>लोग बाग पड़ोसी से <br>अचार तक माँग लाते हैं <br>रहा विचार! <br>तो वह बेचारा <br>महँगाई के मरघट में <br>मुद्दे की तरह दफन हो गया है। <br>समाजवाद का झंडा <br>हमारे लिए कफन हो गया है <br>कूड़ा खा रहे हैं और बदबू पी रहे हैं <br>उनका फोटो खींचकर <br>फिल्‍म वाले लाखों कमाते हैं <br>झोपड़ी की बात करते हैं <br>मगर जुहू में बँगला बनवाते हैं।''<br>हमने कहा "फिल्‍म वालों से <br>तुम्‍हारा क्‍या झगड़ा है ?"<br>वो बोला-<br>"आपके सामने भिखारी नहीं <br>भूतपूर्व प्रोड्यूसर खड़ा है <br>बाप का बीस लाख फूँक कर <br>हाथ में कटोरा पकड़ा!" <br>हमने पाँच रुपए उसके <br>हाथ में रखते हुए कहा-<br>"हम भी फिल्‍मों में ट्राई कर रहे हैं !" <br>वह बोला, "आपकी रक्षा करें दुर्गा माई<br>आपके लिए दुआ करूँगा <br>लग गई तो ठीक <br>वरना आपके पाँच में अपने पाँच मिला कर <br>दस आपके हाथ पर धर दूँगा !"<br><br>
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