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"कब मर रहे हैं?" / शैल चतुर्वेदी

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शाम को घर पहुंचे
तो टेबिल पर उन्ही का पत्र रखा था
लिखा था - "फर्म छोड़े जा रहा हूँ
सोच समझकर भर दीजिए
प्रीमियम के पैसे
बहिन जी से ले जा रहा हूँ
रसीद उन्हे दे जा रहा हूँ
फ़ार्म के साथ
प्रश्नावली भी नथ्थी थी
फ़ार्म क्या था
अच्छी खासी जन्मपत्री थी
हमने तय किया
प्रश्नो के देंगे
ऐसे उत्तर
कि जीवन-बीमा वाले
याद करेंगे जीवन भर
एक-एक उत्तर मे झूल जएंगे
बीमा करना ही भूल जएंगे
 
प्रश्न था-"नाम?"
हमने लिख दिया-"बदनाम।"
-"काम"
-"बेकाम।"
-"आयु?"
-"जाने राम।"
-"निवास स्थान?"
-"हिन्दुस्तान।"
-"आमदनी?"
-"आराम हराम।"
-"ऊचाँई?"
-"जो होनी चहिए।"
-"वज़न?"
-"ऊचाँई के मान से।"
-"सीना"
-"नहीं आता।"
-"कमर?"
-"सीने के मान से।"
-"कोई खराब आदत?"
-"हाँ है
शराब, गांजा, अफ़ीम
मीठा लगता है नीम।"
-"कोई बीमाती है?"
-"हाँ, दिल की
उधरी के बिल की
होती है धड़धड़ाहट
पेट में गड़हड़ाहट
माथे में भनभनाहट
पैरो में सनसनाहट
डॉक्टर कहता है-'टी.बी.' है।
और सबसे बड़ी बीमारी
हमारी बीबी है।"
-"कोई दुश्मन है?"
-"हाँ है
निवसी रीवाँ का
एजेंट बीमा का।"
 
भर कर भेज दिया फ़ार्म
इस इम्प्रेशन में
कि भगदड़ मच जाएगी कारपोरेशन में
मगर सात दिन बाद
सधन्यवाद
पत्र प्राप्त हुआ-
"आपको सूचित करते हुए
होता है हर्ष
कि आपका केस
रजिस्टर हो गया है इसी वर्ष।"
<\poem>