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{{KKRachna
|रचनाकार=ज्ञान प्रकाश विवेक
|संग्रह=गुफ़्तगू अवाम से है / ज्ञान प्रकाश विवेक
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[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
मौसम मेरे शहर का चालाक हो गया था
बादल ख़रीदकर वो बरसात बेचता था

जलते रहे जो शब भर फ़ानूस थे तुम्हारे
जो बुझ गया था मेरी दहलीज़ का दिया था

वो डायरी भी अब तो गुम हो गई है मुझसे
ऐ दोस्त,जिसमे तेरे घर का पता लिखा था

आकाश की थी हसरत उस गेंद को वो छू ले
नन्हा-सा एक बालक जिसको उछालता था

बारिश के वक़्त सारी बस्ती के लोग ख़ुश थे
काग़ज़ का शामियाना सहमा हुआ खड़ा था

जब लौट कर मैं आया तो हो चुका था गूँगा
पत्थर के देवता से हासिल भी क्या हुआ था.
</poem>