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14:46, 1 दिसम्बर 2008 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=नवनीत शर्मा
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[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
उनका जो ख़ुश्बुओं का डेरा है
हाँ, वही ज़ह्र का बसेरा है
सच के क़स्बे का जो अँधेरा है
झूठ के शहर का सवेरा है
मैं सिकंदर हूँ एक वक़्फ़े का
तू मुक़द्दर है वक्त तेरा है
दूर होकर भी पास है कितना
जिसकी पलकों में अश्क मेरा है
जो तुझे तुझ से छीनने आया
यार मेरा रक़ीब तेरा है
मैं चमकता हूँ उसके चेहरे पर
चाँद पर दाग़ का बसेरा है.
</poem>