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10:44, 4 दिसम्बर 2008 '''उनके दानिश-ए-हयात पर हम फ़ना हो गए,
फिल-हकीकत-ए-करम से जां-बलम हो गए।
वो समझे हम रुखसार-ए- हुस्न पर मर गए,
अब कौन समझाये उन्हें, वो क्या गुनाह कर गए।
ये दिल-ए-"अधूरा" हैं, इश्क-ए-अरमान मर गए,
हम समझते थे उन्हें संजीदा, वो रंग-ए-वफादार हो गए।
जौहर-ए-नगीने के पारखी जौहरी हो गए,
गुमान-ए-हुस्न सबाब, अब फौरी हो गए।
नांजा झूठे हुस्न-ओ-लुआब तुम्हारे चले गए,
और आई साथ निभाने की बारी तो आशिक-ए-हुजूम बिखर गए।'''