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{{KKRachna
|रचनाकार=केदारनाथ सिंह
|संग्रह=
}}

<Poem>
सैकड़ों सोई हुई क़ब्रों के बीच
वह अकेली क़ब्र थी
जो ज़िन्दा थी
कोई अभी-अभी गया था
एक ताज़ा फूलों का गुच्छा रखकर
कल के मुरझाए हुए फूलों की
बगल में

एक लाल फूल के नीचे
मैट्रो का एक पीला-सा टिकट भी पड़ा था
उतना ही ताज़ा
मेरी गाइड ने हँसते हुए कहा--
वापसी का टिकट है
कोई पुरानी मित्र रख गई होगी
कि नींद से उठो
तो आ जाना!

मुझे लगा
अस्तित्व का यह भी एक रंग है
न होने के बाद!

होते यदि सार्त्र
क्या कहते इस पर--
सोचता हुआ होटल लौट रहा था मैं

</poem>