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<span class="upnishad_mantra">
:::यस्मिन्सर्वाणि भूतानि आत्मैवाभूद विजानतः।<br>:::तत्र को मोहः कः शोकः एकत्वमनुपश्यतः ॥७॥<br>
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:::सर्वत्र भगवत दृष्टि अथ जब प्राणी को प्राप्तव्य हो,<br>:::प्रति प्राणी में एक मात्र, श्री परमात्मा ज्ञातव्य हो।<br>:::फिर शोक मोह विकार मन के शेष उसके विशेष हों,<br>:::एकमेव हो उसे ब्रह्म दर्शन, शेष दृश्य निःशेष हों॥ [७] <br><br>
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<span class="upnishad_mantra">
:::अन्धं तमः प्रविशन्ति ये विद्यामुपासते।<br>:::ततो भूय इव ते तमो य उ विद्याया रताः ॥९॥<br>
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:::अभ्यर्थना करते अविद्या की, जो वे घन तिमिर में,<br>:::अज्ञान में हैं प्रवेश करते, भटकते तम अजिर में।<br>:::और वे तो जो कि ज्ञान के, मिथ्याभिमान में मत्त हैं,<br>:::हैं निम्न उनसे जो अविद्या, मद के तम उन्मत्त हैं॥ [९]<br><br>
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