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::जब इन्द्रियों की धारणा स्थिर हो तब ही योग है,<br>::किंतु अस्थिर योग इसमें, उदय अस्त का रोग है।<br>::ऋत योग स्थिर सतत साधक, का ही केवल सिद्ध है,<br>::शुचि तत्वगत सामायिकी योगी का योग प्रसिद्ध है॥ [ ११ ]<br><br>
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::है ब्रह्म का अस्तित्व निश्चय, हो यही दृढ भावना,<br>::पुनि तदंतर तत्व भाव से, प्राप्त करने की कामना।<br>::अस्तित्व के प्रति अटल निश्चय, तत्व रूप की साधना,<br>::से प्रभु प्रत्यक्ष होते चाहे जब स्नेही मना॥ [ १३ ]<br><br>
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::जब जड़, अहंता ,मोह, माया, ममता और अज्ञान की,<br>::ग्रंथियों कट जाती तब ही दृष्टि मिलती ज्ञान की।<br>::तब मुक्त हो जाता वह निश्चय,इसी मानव वेश में,<br>::शुचि सत सनातन तत्व है यह गूंजता उपदेश में॥ [ १५ ]<br><br>
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::अंगुष्ठ के परिमाण वाला है, ब्रह्म सबके ह्रदय में,<br>::स्थित तथापि, पृथक अद्भुत, व्याप्त है वह समय में।<br>::परमात्मा भी आत्मा और देह से यौं पृथक है,<br>::ज्यों मूंज सींक से पृथक अद्भुत ,व्यंजना भी अकथ है॥ [ १७ ]<br><br>
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