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15:24, 5 दिसम्बर 2008 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह
|संग्रह=
}}
<Poem>
ताल भर सूरज--
बहुत दिन के बाद देखा आज हमने
और चुपके से उठा लाए--
जाल भर सूरज!
दृष्टियों में बिम्ब भर आकाश--
छाती से लगाए
घाट
घास
पलाश!
तट पर खड़ी बेला
निर्वसन
चुपचाप
हाथों से झुकाए--
डाल भर सूरज!
ताल भर सूरज...!
</poem>