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दुख के सितम हज़ार मगर मुस्कुरा के देख / ज्ञान प्रकाश विवेक
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06:18, 7 दिसम्बर 2008
पानी पे जो हुबाब हैं इनको उठा के देख !
जब मैं हुआ उदास तो बच्चों ने
ये
यह
कहा-
‘काग़ज़ की कश्तियाँ या घरोंदे बना के देख’
द्विजेन्द्र द्विज
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