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छटपटाता हुआ धरती पे पड़ा हूँ लोगो / ज्ञान प्रकाश विवेक
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06:20, 7 दिसम्बर 2008
[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
छटपटाता
हुआ
धरती
पे पड़ा हूँ लोगो
अपनी औक़ात से कुछ ऊँचा उड़ा हूँ लोगो
मुझको ये ज़ीस्त भी लगती है अँगूठी जैसी
दर्द के नग की तरह इसमें
जड़ा
हूँ
लोगो
आश्वासन का कभी इसमें भरा था पानी
द्विजेन्द्र द्विज
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